बाघ को बचाना क्यों आवश्यक है?

बाघ भोजन श्रृंखला में श्रेष्ट स्थान पर हैं और एक स्वस्थ्य जंगल के विकास में अभिभावक की भूमिका निभाते हैं। इनकी आबादी जंगल में रहने वाले अन्य जीवों की जनसंख्या को नियंत्रित करती है, जिससे वहां उगने वाले पेड़ पौधों को पनपने का पर्याप्त अवसर मिलता है।

बाघ न केवल जंगल के शाकाहारी तथा अन्य शिकारी पशुओं की जनसंख्या नियंत्रित करते हैं अपितु उन्हें अनुवानसिक तौर पर मजबूत बनाकर क्रमिक विकास में सहायक होते हैं।

भारत के जंगलों में सन 1900 में 100000 बाघ पाए जाते थे जो सन 1947 आते आते 40000 – 50000 रहा गए। स्वतंत्रता के बाद सन 1972 में बाघ की जनगणना के अनुसार भारत के जंगलों में मात्र 1827 बाघ ही बचे थे। भारत में बाघो की इतनी भारी दुर्दशा के पीछे सरकारों की निष्क्रियता तथा बाघ के दांतों, हड्डियों, चर्म और नाखुनों की चीन में बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए उनका बे रोक टोक शिकार और जानसाधारण में बाघ के प्रति जागरूकता की कमी मुख्य कारण रही। बढ़ती आबादी की अवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बेरोक टोक जंगल कटते चले गए, इससे उनके तथा उनके शिकार के क्षेत्र बड़ी तेजी से समाप्त होते गए और अंततः तत्कालीन भारत की सरकार को 1अप्रैल 1973 के दिन भारतीय बाघ यानि बंगाल टाइगर की आबादी को बढ़ाने एवं उनके आवास को संरक्षित करने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट टाइगर नाम की एक बहुत ही महत्त्वकांक्षी परियोजना प्रारम्भ करनी पड़ी।

आज सरकारों, वन अधिकारीयों, तथा जंगलों के निकट रहने वाले लोगों के अथक एवं निरंतर प्रयासों से भारत में बाघ की आबादी बढ़ कर 3682 हो गई है जो की इनके विश्व में कुल जनसंख्या का 75% है। प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता भारत में बाघ की आबादी बढ़ने के साथ साथ टाइगर रिज़र्व की संख्या 2023 तक 55 होने से स्पष्ट गोचर होती है।

1950 में भारत के पास 40.48 मिलियन हेक्टर भू भाग पर ही जंगल बचे थे जो वर्तमान में संरक्षण के विभिन्न प्रयासों के फलस्वरूप बढ़ कर 80.90 मिलियन हैक्टर हो गये हैं।

जिम्मेदार अधिकारीयों द्वारा वन कानूनों की ठीक से अनुपालना करवाने में सफलता एवं आम जन में वन्य जीवों और जंगलों के प्रति बढ़ी जागरूकता के कारण आज यह संभव हो सका है, जो भविष्य में और बेहतर होगा इसकी पूरी आशा है। इतने विशाल देश में एक लाख बाघ तो होने ही चाहिए, आखिर बाघ हमारे शान का प्रतिक होने के साथ साथ भारत का राष्ट्रीय पशु जो है।

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